लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया
कों का एक
दल संगीन चढ़ाए
खड़ा था। ज्यों
ही अर्थियाँ उनके
द्वार के सामने
से निकलीं, एक
रमणी अंदर से
निकलकर जन-प्रवाह
में मिल गई।
यह इंदु थी।
उस पर किसी
की निगाह न
पड़ी। उसके हाथों
में गुलाब के
फूलों की एक
माला थी, जो
उसने स्वयं गूँथी
थी। वह यह
हार लिए हुए
आगे बढ़ी और
इंद्रदत्ता की अर्थी
के पास जाकर
अश्रुबिंदुओं के साथ
उस पर चढ़ा
दिया। विनय ने
देख लिया। बोले-इंदु!-इंदु ने
उनकी ओर जल-पूरित लोचनों से
देखा, और कुछ
न बोली, कुछ
बोल न सकी।
गंगे! ऐसा प्रभावशाली
दृश्य कदाचित् तुम्हारी
ऑंखों ने भी
न देखा होगा।
तुमने बड़े-बड़े
वीरों को भस्म
का ढेर होते
देखा है, जो
शेरों का मुँह
फेर सकते थे,
बड़े-बड़े प्रतापी
भूपति तुम्हारी ऑंखों
के सामने राख
में मिल गए,
जिनके सिंहनाद से
दिक्पाल थर्राते थे, बड़े-बड़े प्रभुत्वशाली
योध्दा यहाँ चिताग्नि
में समा गए।
कोई यश और
कीर्ति का उपासक
था, कोई राज्य-विस्तार का, कोई
मत्सर-ममत्व का।
कितने ज्ञानी,विरागी,
योगी, पंडित तुम्हारी
ऑंखों के सामने
चितारूढ़ हो गए।
सच कहना, कभी
तुम्हारा हृदय इतना
आनंद-पुलकित हुआ
था? कभी तुम्हारी
तरंगों ने इस
भाँति सिर उ